नई पुस्तकें >> कहना है कुछ कहना है कुछरेनू अंशुल
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मानवीय रिश्तों, भावनाओं, संवेदनाओं और समाज के किन्ही सुने अनसुने, कहे अनकहे वह सारे किरदार जो हमारे आसपास ही हैं - कभी बगल में रहने वाले साहनी जी के यहाँ काम करने वाला माली, कभी गुप्ता जी के यहाँ काम वाली मेड, तो कभी कहीं कॉलेज में पढने वाला युवा वर्ग। कभी ख़ुशी कभी गम तो कभी धूप कही छाव के अनगिनत अहसासों के साथ, हर पात्र को, हर किरदार को, चाहे वह ‘होम डिलीवरी वाला लड़का’ का जिम्मेदार किशोर हो, इच्छा का किशन हो, कसूर का निर्दोष माधव हो या ‘वो आ रहे है के’ मजबूर नेता चाचा जी हों, उन सब को कहना है कुछ... तो फिर देर किस बात की है। इन सबसे आप हम सब एक जगह ही मुलाकात कर लेते है। सुन लेते है कि क्या कुछ कहना है इन्हें सरेआम आपसे, हमसे, सबसे...
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